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Saturday, 11 April 2015

विद्ये विना मती गेली। मती विना निती गेली॥

 ज्योतीबा फुले शुद्र-अतिशुद्राच्या गुलामगिरीचे, दुखाचे  कारण अविद्या आहे असे म्हणत. म्हणून त्यांनी ‘शेतकर्‍याचा आसुड’ या ग्रंथात म्ह्टले आहे की-
      विद्ये विना मती गेली। मती विना निती गेली॥
      निती विना गती गेली। गती विना वित्त गेले।।
      वित्त विना शुद्र खचले। एवढे अनर्थ एका अविद्येने केले॥
      हा महात्मा फुले यांचा संदेश म्हणजे क्रांतीकारक तर आहेच पण एक नविन तत्वज्ञान मांडणारा आहे. पुष्यमित्र शृंगाच्या प्रतिक्रांतीपासून जवळपास २००० वर्षापासून एखाद्या मुक्या जनावराप्रमाणे राहणार्‍या शुद्र अतिशुद्र समुहाचा अडकलेला हुंकार मुक्त झाला या संदेशामुळेच!
[11:00AM, 4/9/2015] ‪+91 98679 98784‬: SC, ST और OBC क्या आप जानते है
-
इसी देश मे सन् 1932 के पहले आपको
ही (जो भारत देश का मूल निवासी है )
मतदान करने का अधिकार नही था !
दोस्तों मतदान करने का अधिकार सिर्फ
देश के नागरीक को होता है ! अर्थात
हम इस देश के मूल निवासी होकर भी
इस भारत देश के नागरीक नही थे !
सन १९१८ से लेकर १९३२ तक
बाबासाहेब के १३ साल के अथक
परीश्रम से भारतीय मूलनिवासी एस सी
, एस टी , ओबीसी समाज को सामाजिक
और राजनितिक प्रतिनिधित्व प्राप्त
हुआ , मतदान करने का अधिकार प्राप्त
हुआ !
गौरतलब हो की अन्य समुदाय , जैसे
की मुस्लिम - सिख- क्रिश्चन इनको
१९०६ मे ही मतदान अधिकार ,
सामाजिक और राजनितिक अधिकार मिला
था ! भारत देश मे आये विदेशी आर्य
ब्राम्हण- मुस्लिम - क्रिश्चन इनको
अधिकार था मतदान करने का , पर वही
इसी देश के एस सी-एस टी - ओबीसी
(जो भारत देश का मूल निवासी है ) उसे
ही मतदान करने का अधिकार नही था !
लगातार १३ साल मनुवादी ताकतो से ,
ब्रिटिशो से , गाँधी से , काँग्रेस से ,
लड़ झगड़कर बहुत संघर्ष करके
बाबासाहेब जी ने हमे , इस देश के मुल
निवासीयो को , अंतत: १९३२ मे
'भारतीय नागरीकता ' का , Indian
Citizen का गौरव प्राप्त करके
दिया !! अपने ही देश के जल- संसाधन ,
हवा , जमीन , जंगल पर हमारा अधिकार
नही था ! हमे शिक्षा का अधिकार नही
था ! एक भारतीय नागरीक होने से हमे
यह सब संविधानिक अधिकार मिले है !
मेरे sc st obc nt vjnt bc sbc
mbc maratha भाईयो , आज छाती
फुला के , सर ऊँचा करके , तुम जो
कहते हो " हम सब भारतीय है , इस
देश के निवासी है " , यह कहने की
ताकत , यह अधिकार , सिर्फ और
सिर्फ बाबासाहेब और उनके लिखित
संविधान की वजह से आपको मिला है ।
कोटी कोटी प्रणाम महामानव बाबासाहेब
जी को **
आधुनिक मनु औलाद गाँधी , पूना पैक्ट
समझौते मे हमसे हमारा यह सामाजिक
अधिकार भी छीनना चाहता था , जो की
बाबासाहेब जी ने होने नही दिया ! " मूल
निवासी sc st obc की Indian
Citizenship की पहचान, अधिकार ",
बाबासाहेब जी के अनेक उपलब्धियो मे
से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है , जिसे
अब भुनाना - गिनाना- प्रसार प्रचारीत
करना होगा !
जय भीम जय मूलनिवासी
मित्रो इस सचाई को देश के मूलनिवासी
समाज के प्रत्येक सदस्य तक पहुचना
हमारी जिम्मेदारी हे। मेने अपना दायित्व
निभाया अब आप भी इसे आगे बढ़ाये।
[12:24PM, 4/9/2015] ‪+91 99276 53405‬: आरक्षण नौकरी  या गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम नहीं है , sc/st /obc  के प्रतिनिधित्व  को सुनिश्चित करने और शासक जमात बनने का अधिकार है।
यह तीन प्रकार का है।
1: शिक्षा
2: नौकरी
3: पूना पैक्ट की बजह से राजनितिक।
   पुन पैक्ट की बजह से जो राजनितिक आरक्षण मिला उससे दलाल और भड़बे पैदा हो रहे है इस लिए बाबा साहब खुद ही जीवन भर पूना पैक्ट का विरोध करते रहे।
बाबा साहब के अधूरे मिशन को पूरा करने की प्रतिज्ञा करने से पहले यह तो समझ ले कि बाबा साहब का मिशन था क्या?
एक लाईन में मिशन समझना है=======
समता स्वतंत्रता बंधुता न्याय पर आधारित समाज एवम् राष्ट्र का निर्माण अर्थात  व्यवस्था परिवर्तन ।
जब तक क्रमिक असमानता पर आधारित व्यवस्था को समाप्त नहीं करते तब तक समता मूलक समाज की स्थापना संभव नहीं है।
व्यवस्था को बदलने के लिए बदलने बाले साधन संसाधन का निर्माण करना होगा।
आत्म निर्भार स्वावलंबी आंदोलन निर्माण करना होगा।
इस सबके लिए अपना ही पैसा समय श्रम हुनर बुद्धि लगाना होगा।
हमारी हजारो समस्याओ का कारण है राष्ट्रव्यापी क्रमिक असमानता पर ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई व्यवस्था।
तो साथियो विचार करे चिंतन करे और शक्ति का निर्माण करे, निर्माण की गई शक्ति का संचय करे और संचयित शक्ति का उचित समय पर समुचित उपयोग करे तभी बाबा साहब के अधूरे मिशन को हम पूरा कर सकते है। डॉ राजेश
[2:16PM, 4/9/2015] ‪+91 97598 76596‬: सारे देश मे बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी के विचार जयंती तक फैलाने की हमारी जम्मेदारी है-
जयभीम
1. हम भारतीय हैं , पहले और अंत में .
2. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शाश्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए .
3. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हांसिल कर लेते , क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं
4. राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को ख़ारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं .
5. मनुष्य नश्वर है . उसी तरह विचार भी नश्वर हैं . एक विचार को प्रचार -प्रसार की ज़रुरत होती है , जैसे कि एक पौधे को पानी की . नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं .
6. जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिए .
7.क़ानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा ज़रूर दी जानी चाहिए .
8. आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित हो रहे हैं . उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं . और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं .
9. हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है.
10. मैं किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूँ .
11. इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशाश्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशाश्त्र की होती है . निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो .
12. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है .जिसकी आवश्यकता है वो है न्याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था.
13. हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शाशन नहीं कर सकता को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शाशन नहीं कर सकता .
14. बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए .
15. लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए . अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा .
16. एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है .
जयभीम
बोधिसत्व बाबा साहब के महान विचारो को फ़ैलाने की अब हमारी जिमेदारी है
१४ अप्रैल तक १ लाख पोस्ट फ़ैलाने है देश में बाबा साहब के ।
जय भीम !  नमोः बुद्धाय !  जय भारत!
Educate, editate & organized.
Liberty, eqality & freternity.
[8:08AM, 4/10/2015] ‪+91 89545 72496‬: अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध
कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेँ मुख्य दरवाजे
के
अंदर
कि ओर डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर
का फोटो लगाया हुआ है !
वहाँ ऐसा लिखा ह

,"हमे गर्व है कि , ऐसा छात्र
हमारी यूनिवर्सिटी से पढकर गया है ..
और उसने
भारत का संविधान लिखकर उस देश पर
बड़ा उपकार किया है !"
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के 300 साल पूरे
होने के उपलक्ष्य मेँ
, पूरे
300 सालोँ मेँ इस यूनिवर्सिटी से सबसे
होशियार छात्र कौन रहा?
इसका सर्वे किया गया
! उस सर्वे मे 6 नाम
सामने आए , उसमे नं. 1
पर नाम था डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर
का !
डॉक्टर बाबासाहाब आंबेडकर के सम्मान मेँ
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के
मुख्य दरवाजे पर उनकी कांस्य
प्रतिमा लगायी गयी , उस
मूर्ती का अनावरण अमेरिकन
राष्ट्रपती बराक ओबामा के करकमलोँ से
किया गया ! उस मूर्ती के
नीचे लिखा
गया है
," सिम्बॉल ऑफ नॉलेज"
यानि ज्ञान का प्रतीक"
सिम्बॉल ऑफ नॉलेज " — डॉ. भीमराव
अंबेडकर जी को सत सत
नमन!!
Is SMS ko itna faila do taki har Indians ko pata chale " Dr. B. R. Ambedkar  " is the greatest personality in the world.....
[11:14PM, 4/10/2015] ‪+91 81223 70392‬: भागवत की भारत के संविधान को और भारत मुक्ति मोर्चा को खुली चुनौती ...देखते है अब ३ % विदेशी यूरेशियन ब्राम्हण जितते है या ८५ % मूलनिवासी बहुजन ? कलिंग युद्ध और १८१८ का महा संग्राम ने तो सिद्ध ही किया है की हमारे पुरखे जीते थे ...........
साथियो rss और विश्व हिन्दू परिषद ने भारत मुक्ति मोर्चा के कार्यक्रम का विरोध किया है और ठाना कोपऱी के api बगले 09673633066 ने भारत के संविधान को ही मानने से इंकार कर दिया है . जो rss के ब्राम्हण छत्रपति शिवाजी महाराज का बाप बदल देते है वह सिखायेंगे हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है ? मुद्दा सिद्धांतो का है .विदेशी ब्राम्हण उनके हरकतो मे आ गये है .साथियो हम ठाना कोपऱी का निर्धारित कार्यक्रम करेंगेही .आज श्याम तक उन्हे वॉर्निंग लेटर दिया है .अगर मानते है तो ठीक नहीं मानते है तो ठीक !लातो के भट बातो से थोड़े मानेंगे ? हमारे मौलिक अधिकारो का जो भी ब्राम्हण विरोध करेगा वह और उसकी जमात दुनिया से नामो निशान मिटा बैटेगी ! जन आंदोलन के लिये हम भी उताविले है ...साथियो हमारे महापूरूषो की विरासत को हम चला रहे है इसका हमे गर्व है .फेसबूक,whatsaap, social site के माध्यम से मै जनता को अपील कर रहा हु की इस बात को सारे मूलनिवासी बहुजानो मे फैला दो फिर देखते है भागवत के चोटी मे दम है या हमारे सिद्धांतो मे दम है !!
[11:30PM, 4/10/2015] ‪+91 88273 30652‬: राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकटवर्ती इलाके दुदू के फागी कस्बे के चकवाडा गाँव के निवासी बाबूलाल बैरवा लम्बे समय तक विहिप से जुड़े रहे हैं तथा उन्होंने कारसेवा में भी हिस्सेदारी की। संघ की विचारधारा से जुड़ने और वहाँ से मोह भंग होने के बाद वे इन दिनों अम्बेडकर के विचारों से प्रभावित हैं। उनके साथ घटी एक घटना ने उनकी और उन्हीं के जैसे अन्य दलित ग्रामीणों की आँखें खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हुआ यह कि बाबूलाल के गाँव चकवाडा के जिस तालाब में गाय, भैंस, बकरी, बिल्ली, कुत्ते, सूअर आदि सब नहाते थे, उसमें यह कारसेवक बाबूलाल बैरवा भी नहाने की हिम्मत कर बैठा, यह सोच कर कि है तो वह भी हिन्दू ही ना, वह भी संघ से जुड़ा हुआ विहिप का कार्यकर्त्ता और राम मंदिर के लिए जान तक देने को तैयार रहा एक समर्पित कारसेवक है। इसी गाँव के लोग तो ले गए थे उसे अयोध्या अपने साथ, वैसे भी सब हिन्दू-हिन्दू तो बराबर ही है, लेकिन बाबूलाल का भ्रम उस दिन टूट गया जिस दिन वह अपने ही गाँव के तालाब में नहाने का अपराध कर बैठा। गाँव के सार्वजनिक तालाब में नहाने के जुर्म में इस दलित कारसेवक पर सवर्ण हिन्दुओं ने 51 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया। गाँव वालों के इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ बाबूलाल चिल्लाता रहा कि वह भी तो हिन्दू ही है, कारसेवा में भी जा चुका है, विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़ा हुआ है और फिर वह भी तो उसी तालाब में नहाया है जिसमें सब लोग नहाते हैं। इसमें जब जानवर नहा सकते हैं तो वह एक इन्सान हो कर क्यों नहीं नहा सकता है ? लेकिन बाबूलाल बैरवा की पुकार किसी भी हिन्दू संगठन तक नहीं पहुंची।
थक हार कर बाबूलाल न्याय के हेतु जयपुर में दलित अधिकार केंद्र के पी एल मीमरौट से मिला। इसके बाद दलित एवं मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन आगे आये और बाबूलाल को न्याय और संवैधानिक हक अधिकार दिलाने की लड़ाई और तेज तथा व्यापक हुयी। देश भर से आये तकरीबन 500 लोग एक रैली के रूप में चकवाडा के दलितों को सार्वजानिक तालाब पर नहाने का हक दिलाने के लिए सदभावना रैली के रूप में निकले, मगर उन्हें माधोराजपुरा नामक गाँव के पास ही कानून, व्यवस्था और सुरक्षा के नाम पर पुलिस और प्रशासन द्वारा रोक लिया गया। मैं भी इस रैली का हिस्सा था, हिन्दू तालिबान का टेरर क्या होता है, आप इसे उस दिन साक्षात् देख सकते थे। लगभग 40 हज़ार उग्र हिन्दुओं की भीड़ ‘ कल्याण धणी की जय‘ और ‘जय जय श्रीराम‘ के नारे लगाते हुए निहत्थे दलितों की सदभावना रैली की और बढ़ रहे थी। उनके हाथ में लट्ठ और अन्य कई प्रकार के अस्त्र शस्त्र भी थे, उनका एक ही उद्देश्य था दलितों को सबक सिखाना। अब अतिवादियों की भीड़ थी सामने, बीच में पुलिस और एक तरफ मुट्ठी भर दलितों की एक रैली।
हालात की गंभीरता के मद्देनज़र दलितों ने अपनी रैली को वहीँ समाप्त कर देने का फैसला कर लिया। गुस्साए हिंदुत्ववीरों की हिंसक भीड़ ने पुलिस और प्रशासन पर धावा बोल दिया। वे इस बात से खफा हो गए थे कि प्रशासन के बीच में खड़े हो जाने की वजह से वो लोग दलितों को सबक नहीं सिखा पा रहे थे। इसलिए उनका आसान निशाना जिलाधिकारी से लेकर पुलिस के आई जी और एस पी इत्यादि लोग बन गए। बड़े अधिकारीयों को जानबूझकर निशाना बनाया गया, जिन्होंने भाग कर जान बचायी अंततः लाठी चार्ज और फायरिंग हुयी जिसमे 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। दलितों की समानता रैली और बराबरी की मुहिम अपने मक़ाम तक नहीं पहुंच पाई।
इस घटनाक्रम पर संघ की ओर से दलितों के पक्ष में एक भी शब्द बोलने के बजाय इसे विदेशी लोगों द्वारा हिन्दू समाज को बांटने का षड्यंत्र करार दिया गया। उस दिन दलितों के विरुद्ध जुटी हिंसक भीड़ का नेतृत्व संघ परिवार के विभिन्न संगठनों से जुड़े ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता कर रहे थे। इसका मतलब यह था कि दलितों के आन्दोलन को विफल करने की पूरी साज़िश को संघ का समर्थन प्राप्त था। मनुवादियों ने मानवतावादियों की मुहिम को मात दे दी थी। अंततः बाबूलाल बैरवा को हिन्दू मानना तो बहुत दूर की बात इन्सान ही नहीं माना जा सका, या यूँ समझ लीजिये कि जानवर से भी बदतर मान लिया गया।
संघ परिवार में इंसानों को जानवरों से भी कमतर मानने का रिवाज़ शुरू से ही है। इसका साक्षात् उदाहरण हरियाणा प्रदेश के जज्जर जिले की वह घटना है, जिसमे पुलिस की मौजूदगी में गौहत्या की आशंका में पांच दलितों की निर्मम तरीके से जिंदा जला हत्या की गयी, जबकि ये लोग एक मरी हुयी गाय की खाल ( चमड़ा ) उतार रहे थे, पूरे देश के इंसानियतपसंद लोगों ने इस अमानवीय घटना की कड़े शब्दों में निंदा की, वहीँ विहिप के राष्ट्रीय नेता आचार्य गिरिराज किशोर ने निर्दोष दलितों के इस नरसंहार को उचित ठहराते हुए यहाँ तक कह दिया कि –‘एक गाय की जान पांच दलितों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ एक गाय जो कि अंततः है तो एक जानवर ही, वह उनके लिए दलितों (इंसानों ) की जान से ज्यादा कीमती होता है ! वे गाय के मूत्र को पवित्र मान कर पी जाते हैं, लेकिन दलितों के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पी सकते हैं। घर में पाले गए कुत्ते और बिल्लियाँ उनके साथ खाती हैं, साथ में एक ही पलंग पर सोती है और उनकी महँगी महंगी वातानुकूलित गाड़ियों में घूमती है मगर दलितों को साथ बिठाना तो दूर उनकी छाया मात्र से ही उन्हें घिन आती है। यह कैसा धर्म है जहाँ पर गन्दगी फ़ैलाने वाले लोग सम्मान पाते है और सफाई करने वाले लोग नीचे समझे जाते हैं, तमाम निकम्मे जो सिर्फ पोथी पत्रा बांचते हैं या दुकानों पर बैठ कर कम तोलते हैं और दिन भर झूठ पर झूठ बोलते हैं, उन्हें ऊँचा समझा जा कर उच्च वर्ग कहा जाता है, जबकि मेरी नज़र में यह विचार एवं व्यवहार के तल पर ‘ उच्च‘ नहीं ‘तुच्छ‘ वर्ग है जो किसी और की मेहनत पर जिंदा रहते हैं, श्रम को सम्मान नहीं, अकर्मण्यता को आदर देने वाला निकम्मापन ही यहाँ धर्म मान लिया गया है। यह बिलकुल झूठ, फरेब पर टिका हुआ गरीब, दलित, आदिवासी और महिला विरोधी धर्म है, रोज महिलाएं घरों में अपमानित होती हैं। उन्हें ज्यादती का शिकार होना पड़ता है, जबरन शादी करनी पड़ती है और रोज बरोज अनिच्छा के बावजूद भी अपने मर्द की कथित मर्दानगी जो कि सिर्फ वीर्यपात तक बनी रहती है, उसे झेलना पड़ता है। उन्हें हर प्रकार से प्रताड़ित, दण्डित और प्रतिबंधित एवं सीमित करने वाला यह धर्म ‘ यत्र नार्यस्तु पुजयन्तु,रमन्ते तत्र देवता‘ के श्लोक बोल कर आत्ममुग्ध होता जाता है। इसे धर्म कहें या कमजोरों का शोषण करने वाली अन्यायकारी व्यवस्था ? इस गैर बराबरी को धर्म कहना वास्तविक धर्म का अपमान करना है।
गैर बराबरी पर टिके इस धर्म के बारे में सोचते सोचते मुझे डॉ. अम्बेडकर का वह कथन बार बार याद आता है जिसमें देश के दलितों को सावधान करते हुए वो कहते हैं कि – ‘भारत कभी भी मजहबी मुल्क नहीं बनना चाहिए, विशेषकर हिन्दू राष्ट्र तो कभी भी नहीं, वरना देश के अनुसूचित जाति व जन जाति के लोग पुनः अछूत बनाये जा कर गुलाम बना दिए जायेंगे। …….अब यह दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को तय करना है कि वे आज़ाद रहना चाहते है या वर्ण व्यवस्था के, जाति और लिंग भेद के गुलाम बनने को राज़ी है ? अगर राज़ी है तो मुझे कुछ भी नहीं कहना है। …………. ज्योतीबा फुले शुद्र-अतिशुद्राच्या गुलामगिरीचे, दुखाचे  कारण अविद्या आहे असे म्हणत. म्हणून त्यांनी ‘शेतकर्‍याचा आसुड’ या ग्रंथात म्ह्टले आहे की-
      विद्ये विना मती गेली। मती विना निती गेली॥
      निती विना गती गेली। गती विना वित्त गेले।।
      वित्त विना शुद्र खचले। एवढे अनर्थ एका अविद्येने केले॥
      हा महात्मा फुले यांचा संदेश म्हणजे क्रांतीकारक तर आहेच पण एक नविन तत्वज्ञान मांडणारा आहे. पुष्यमित्र शृंगाच्या प्रतिक्रांतीपासून जवळपास २००० वर्षापासून एखाद्या मुक्या जनावराप्रमाणे राहणार्‍या शुद्र अतिशुद्र समुहाचा अडकलेला हुंकार मुक्त झाला या संदेशामुळेच!
[11:00AM, 4/9/2015] ‪+91 98679 98784‬: SC, ST और OBC क्या आप जानते है
-
इसी देश मे सन् 1932 के पहले आपको
ही (जो भारत देश का मूल निवासी है )
मतदान करने का अधिकार नही था !
दोस्तों मतदान करने का अधिकार सिर्फ
देश के नागरीक को होता है ! अर्थात
हम इस देश के मूल निवासी होकर भी
इस भारत देश के नागरीक नही थे !
सन १९१८ से लेकर १९३२ तक
बाबासाहेब के १३ साल के अथक
परीश्रम से भारतीय मूलनिवासी एस सी
, एस टी , ओबीसी समाज को सामाजिक
और राजनितिक प्रतिनिधित्व प्राप्त
हुआ , मतदान करने का अधिकार प्राप्त
हुआ !
गौरतलब हो की अन्य समुदाय , जैसे
की मुस्लिम - सिख- क्रिश्चन इनको
१९०६ मे ही मतदान अधिकार ,
सामाजिक और राजनितिक अधिकार मिला
था ! भारत देश मे आये विदेशी आर्य
ब्राम्हण- मुस्लिम - क्रिश्चन इनको
अधिकार था मतदान करने का , पर वही
इसी देश के एस सी-एस टी - ओबीसी
(जो भारत देश का मूल निवासी है ) उसे
ही मतदान करने का अधिकार नही था !
लगातार १३ साल मनुवादी ताकतो से ,
ब्रिटिशो से , गाँधी से , काँग्रेस से ,
लड़ झगड़कर बहुत संघर्ष करके
बाबासाहेब जी ने हमे , इस देश के मुल
निवासीयो को , अंतत: १९३२ मे
'भारतीय नागरीकता ' का , Indian
Citizen का गौरव प्राप्त करके
दिया !! अपने ही देश के जल- संसाधन ,
हवा , जमीन , जंगल पर हमारा अधिकार
नही था ! हमे शिक्षा का अधिकार नही
था ! एक भारतीय नागरीक होने से हमे
यह सब संविधानिक अधिकार मिले है !
मेरे sc st obc nt vjnt bc sbc
mbc maratha भाईयो , आज छाती
फुला के , सर ऊँचा करके , तुम जो
कहते हो " हम सब भारतीय है , इस
देश के निवासी है " , यह कहने की
ताकत , यह अधिकार , सिर्फ और
सिर्फ बाबासाहेब और उनके लिखित
संविधान की वजह से आपको मिला है ।
कोटी कोटी प्रणाम महामानव बाबासाहेब
जी को **
आधुनिक मनु औलाद गाँधी , पूना पैक्ट
समझौते मे हमसे हमारा यह सामाजिक
अधिकार भी छीनना चाहता था , जो की
बाबासाहेब जी ने होने नही दिया ! " मूल
निवासी sc st obc की Indian
Citizenship की पहचान, अधिकार ",
बाबासाहेब जी के अनेक उपलब्धियो मे
से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है , जिसे
अब भुनाना - गिनाना- प्रसार प्रचारीत
करना होगा !
जय भीम जय मूलनिवासी
मित्रो इस सचाई को देश के मूलनिवासी
समाज के प्रत्येक सदस्य तक पहुचना
हमारी जिम्मेदारी हे। मेने अपना दायित्व
निभाया अब आप भी इसे आगे बढ़ाये।
[12:24PM, 4/9/2015] ‪+91 99276 53405‬: आरक्षण नौकरी  या गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम नहीं है , sc/st /obc  के प्रतिनिधित्व  को सुनिश्चित करने और शासक जमात बनने का अधिकार है।
यह तीन प्रकार का है।
1: शिक्षा
2: नौकरी
3: पूना पैक्ट की बजह से राजनितिक।
   पुन पैक्ट की बजह से जो राजनितिक आरक्षण मिला उससे दलाल और भड़बे पैदा हो रहे है इस लिए बाबा साहब खुद ही जीवन भर पूना पैक्ट का विरोध करते रहे।
बाबा साहब के अधूरे मिशन को पूरा करने की प्रतिज्ञा करने से पहले यह तो समझ ले कि बाबा साहब का मिशन था क्या?
एक लाईन में मिशन समझना है=======
समता स्वतंत्रता बंधुता न्याय पर आधारित समाज एवम् राष्ट्र का निर्माण अर्थात  व्यवस्था परिवर्तन ।
जब तक क्रमिक असमानता पर आधारित व्यवस्था को समाप्त नहीं करते तब तक समता मूलक समाज की स्थापना संभव नहीं है।
व्यवस्था को बदलने के लिए बदलने बाले साधन संसाधन का निर्माण करना होगा।
आत्म निर्भार स्वावलंबी आंदोलन निर्माण करना होगा।
इस सबके लिए अपना ही पैसा समय श्रम हुनर बुद्धि लगाना होगा।
हमारी हजारो समस्याओ का कारण है राष्ट्रव्यापी क्रमिक असमानता पर ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई व्यवस्था।
तो साथियो विचार करे चिंतन करे और शक्ति का निर्माण करे, निर्माण की गई शक्ति का संचय करे और संचयित शक्ति का उचित समय पर समुचित उपयोग करे तभी बाबा साहब के अधूरे मिशन को हम पूरा कर सकते है। डॉ राजेश
[2:16PM, 4/9/2015] ‪+91 97598 76596‬: सारे देश मे बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी के विचार जयंती तक फैलाने की हमारी जम्मेदारी है-
जयभीम
1. हम भारतीय हैं , पहले और अंत में .
2. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शाश्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए .
3. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हांसिल कर लेते , क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं
4. राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को ख़ारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं .
5. मनुष्य नश्वर है . उसी तरह विचार भी नश्वर हैं . एक विचार को प्रचार -प्रसार की ज़रुरत होती है , जैसे कि एक पौधे को पानी की . नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं .
6. जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिए .
7.क़ानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा ज़रूर दी जानी चाहिए .
8. आज भारतीय दो अलग -अलग विचारधाराओं द्वारा शाशित हो रहे हैं . उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारे को स्थापित करते हैं . और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं .
9. हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है.
10. मैं किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूँ .
11. इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशाश्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशाश्त्र की होती है . निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो .
12. एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है .जिसकी आवश्यकता है वो है न्याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था.
13. हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शाशन नहीं कर सकता को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शाशन नहीं कर सकता .
14. बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए .
15. लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए . अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा .
16. एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है .
जयभीम
बोधिसत्व बाबा साहब के महान विचारो को फ़ैलाने की अब हमारी जिमेदारी है
१४ अप्रैल तक १ लाख पोस्ट फ़ैलाने है देश में बाबा साहब के ।
जय भीम !  नमोः बुद्धाय !  जय भारत!
Educate, editate & organized.
Liberty, eqality & freternity.
[8:08AM, 4/10/2015] ‪+91 89545 72496‬: अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध
कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेँ मुख्य दरवाजे
के
अंदर
कि ओर डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर
का फोटो लगाया हुआ है !
वहाँ ऐसा लिखा ह

,"हमे गर्व है कि , ऐसा छात्र
हमारी यूनिवर्सिटी से पढकर गया है ..
और उसने
भारत का संविधान लिखकर उस देश पर
बड़ा उपकार किया है !"
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के 300 साल पूरे
होने के उपलक्ष्य मेँ
, पूरे
300 सालोँ मेँ इस यूनिवर्सिटी से सबसे
होशियार छात्र कौन रहा?
इसका सर्वे किया गया
! उस सर्वे मे 6 नाम
सामने आए , उसमे नं. 1
पर नाम था डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर
का !
डॉक्टर बाबासाहाब आंबेडकर के सम्मान मेँ
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के
मुख्य दरवाजे पर उनकी कांस्य
प्रतिमा लगायी गयी , उस
मूर्ती का अनावरण अमेरिकन
राष्ट्रपती बराक ओबामा के करकमलोँ से
किया गया ! उस मूर्ती के
नीचे लिखा
गया है
," सिम्बॉल ऑफ नॉलेज"
यानि ज्ञान का प्रतीक"
सिम्बॉल ऑफ नॉलेज " — डॉ. भीमराव
अंबेडकर जी को सत सत
नमन!!
Is SMS ko itna faila do taki har Indians ko pata chale " Dr. B. R. Ambedkar  " is the greatest personality in the world.....
[11:14PM, 4/10/2015] ‪+91 81223 70392‬: भागवत की भारत के संविधान को और भारत मुक्ति मोर्चा को खुली चुनौती ...देखते है अब ३ % विदेशी यूरेशियन ब्राम्हण जितते है या ८५ % मूलनिवासी बहुजन ? कलिंग युद्ध और १८१८ का महा संग्राम ने तो सिद्ध ही किया है की हमारे पुरखे जीते थे ...........
साथियो rss और विश्व हिन्दू परिषद ने भारत मुक्ति मोर्चा के कार्यक्रम का विरोध किया है और ठाना कोपऱी के api बगले 09673633066 ने भारत के संविधान को ही मानने से इंकार कर दिया है . जो rss के ब्राम्हण छत्रपति शिवाजी महाराज का बाप बदल देते है वह सिखायेंगे हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है ? मुद्दा सिद्धांतो का है .विदेशी ब्राम्हण उनके हरकतो मे आ गये है .साथियो हम ठाना कोपऱी का निर्धारित कार्यक्रम करेंगेही .आज श्याम तक उन्हे वॉर्निंग लेटर दिया है .अगर मानते है तो ठीक नहीं मानते है तो ठीक !लातो के भट बातो से थोड़े मानेंगे ? हमारे मौलिक अधिकारो का जो भी ब्राम्हण विरोध करेगा वह और उसकी जमात दुनिया से नामो निशान मिटा बैटेगी ! जन आंदोलन के लिये हम भी उताविले है ...साथियो हमारे महापूरूषो की विरासत को हम चला रहे है इसका हमे गर्व है .फेसबूक,whatsaap, social site के माध्यम से मै जनता को अपील कर रहा हु की इस बात को सारे मूलनिवासी बहुजानो मे फैला दो फिर देखते है भागवत के चोटी मे दम है या हमारे सिद्धांतो मे दम है !!
[11:30PM, 4/10/2015] ‪+91 88273 30652‬: राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकटवर्ती इलाके दुदू के फागी कस्बे के चकवाडा गाँव के निवासी बाबूलाल बैरवा लम्बे समय तक विहिप से जुड़े रहे हैं तथा उन्होंने कारसेवा में भी हिस्सेदारी की। संघ की विचारधारा से जुड़ने और वहाँ से मोह भंग होने के बाद वे इन दिनों अम्बेडकर के विचारों से प्रभावित हैं। उनके साथ घटी एक घटना ने उनकी और उन्हीं के जैसे अन्य दलित ग्रामीणों की आँखें खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हुआ यह कि बाबूलाल के गाँव चकवाडा के जिस तालाब में गाय, भैंस, बकरी, बिल्ली, कुत्ते, सूअर आदि सब नहाते थे, उसमें यह कारसेवक बाबूलाल बैरवा भी नहाने की हिम्मत कर बैठा, यह सोच कर कि है तो वह भी हिन्दू ही ना, वह भी संघ से जुड़ा हुआ विहिप का कार्यकर्त्ता और राम मंदिर के लिए जान तक देने को तैयार रहा एक समर्पित कारसेवक है। इसी गाँव के लोग तो ले गए थे उसे अयोध्या अपने साथ, वैसे भी सब हिन्दू-हिन्दू तो बराबर ही है, लेकिन बाबूलाल का भ्रम उस दिन टूट गया जिस दिन वह अपने ही गाँव के तालाब में नहाने का अपराध कर बैठा। गाँव के सार्वजनिक तालाब में नहाने के जुर्म में इस दलित कारसेवक पर सवर्ण हिन्दुओं ने 51 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया। गाँव वालों के इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ बाबूलाल चिल्लाता रहा कि वह भी तो हिन्दू ही है, कारसेवा में भी जा चुका है, विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़ा हुआ है और फिर वह भी तो उसी तालाब में नहाया है जिसमें सब लोग नहाते हैं। इसमें जब जानवर नहा सकते हैं तो वह एक इन्सान हो कर क्यों नहीं नहा सकता है ? लेकिन बाबूलाल बैरवा की पुकार किसी भी हिन्दू संगठन तक नहीं पहुंची।
थक हार कर बाबूलाल न्याय के हेतु जयपुर में दलित अधिकार केंद्र के पी एल मीमरौट से मिला। इसके बाद दलित एवं मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन आगे आये और बाबूलाल को न्याय और संवैधानिक हक अधिकार दिलाने की लड़ाई और तेज तथा व्यापक हुयी। देश भर से आये तकरीबन 500 लोग एक रैली के रूप में चकवाडा के दलितों को सार्वजानिक तालाब पर नहाने का हक दिलाने के लिए सदभावना रैली के रूप में निकले, मगर उन्हें माधोराजपुरा नामक गाँव के पास ही कानून, व्यवस्था और सुरक्षा के नाम पर पुलिस और प्रशासन द्वारा रोक लिया गया। मैं भी इस रैली का हिस्सा था, हिन्दू तालिबान का टेरर क्या होता है, आप इसे उस दिन साक्षात् देख सकते थे। लगभग 40 हज़ार उग्र हिन्दुओं की भीड़ ‘ कल्याण धणी की जय‘ और ‘जय जय श्रीराम‘ के नारे लगाते हुए निहत्थे दलितों की सदभावना रैली की और बढ़ रहे थी। उनके हाथ में लट्ठ और अन्य कई प्रकार के अस्त्र शस्त्र भी थे, उनका एक ही उद्देश्य था दलितों को सबक सिखाना। अब अतिवादियों की भीड़ थी सामने, बीच में पुलिस और एक तरफ मुट्ठी भर दलितों की एक रैली।
हालात की गंभीरता के मद्देनज़र दलितों ने अपनी रैली को वहीँ समाप्त कर देने का फैसला कर लिया। गुस्साए हिंदुत्ववीरों की हिंसक भीड़ ने पुलिस और प्रशासन पर धावा बोल दिया। वे इस बात से खफा हो गए थे कि प्रशासन के बीच में खड़े हो जाने की वजह से वो लोग दलितों को सबक नहीं सिखा पा रहे थे। इसलिए उनका आसान निशाना जिलाधिकारी से लेकर पुलिस के आई जी और एस पी इत्यादि लोग बन गए। बड़े अधिकारीयों को जानबूझकर निशाना बनाया गया, जिन्होंने भाग कर जान बचायी अंततः लाठी चार्ज और फायरिंग हुयी जिसमे 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। दलितों की समानता रैली और बराबरी की मुहिम अपने मक़ाम तक नहीं पहुंच पाई।
इस घटनाक्रम पर संघ की ओर से दलितों के पक्ष में एक भी शब्द बोलने के बजाय इसे विदेशी लोगों द्वारा हिन्दू समाज को बांटने का षड्यंत्र करार दिया गया। उस दिन दलितों के विरुद्ध जुटी हिंसक भीड़ का नेतृत्व संघ परिवार के विभिन्न संगठनों से जुड़े ग्राम स्तरीय कार्यकर्त्ता कर रहे थे। इसका मतलब यह था कि दलितों के आन्दोलन को विफल करने की पूरी साज़िश को संघ का समर्थन प्राप्त था। मनुवादियों ने मानवतावादियों की मुहिम को मात दे दी थी। अंततः बाबूलाल बैरवा को हिन्दू मानना तो बहुत दूर की बात इन्सान ही नहीं माना जा सका, या यूँ समझ लीजिये कि जानवर से भी बदतर मान लिया गया।
संघ परिवार में इंसानों को जानवरों से भी कमतर मानने का रिवाज़ शुरू से ही है। इसका साक्षात् उदाहरण हरियाणा प्रदेश के जज्जर जिले की वह घटना है, जिसमे पुलिस की मौजूदगी में गौहत्या की आशंका में पांच दलितों की निर्मम तरीके से जिंदा जला हत्या की गयी, जबकि ये लोग एक मरी हुयी गाय की खाल ( चमड़ा ) उतार रहे थे, पूरे देश के इंसानियतपसंद लोगों ने इस अमानवीय घटना की कड़े शब्दों में निंदा की, वहीँ विहिप के राष्ट्रीय नेता आचार्य गिरिराज किशोर ने निर्दोष दलितों के इस नरसंहार को उचित ठहराते हुए यहाँ तक कह दिया कि –‘एक गाय की जान पांच दलितों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ एक गाय जो कि अंततः है तो एक जानवर ही, वह उनके लिए दलितों (इंसानों ) की जान से ज्यादा कीमती होता है ! वे गाय के मूत्र को पवित्र मान कर पी जाते हैं, लेकिन दलितों के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पी सकते हैं। घर में पाले गए कुत्ते और बिल्लियाँ उनके साथ खाती हैं, साथ में एक ही पलंग पर सोती है और उनकी महँगी महंगी वातानुकूलित गाड़ियों में घूमती है मगर दलितों को साथ बिठाना तो दूर उनकी छाया मात्र से ही उन्हें घिन आती है। यह कैसा धर्म है जहाँ पर गन्दगी फ़ैलाने वाले लोग सम्मान पाते है और सफाई करने वाले लोग नीचे समझे जाते हैं, तमाम निकम्मे जो सिर्फ पोथी पत्रा बांचते हैं या दुकानों पर बैठ कर कम तोलते हैं और दिन भर झूठ पर झूठ बोलते हैं, उन्हें ऊँचा समझा जा कर उच्च वर्ग कहा जाता है, जबकि मेरी नज़र में यह विचार एवं व्यवहार के तल पर ‘ उच्च‘ नहीं ‘तुच्छ‘ वर्ग है जो किसी और की मेहनत पर जिंदा रहते हैं, श्रम को सम्मान नहीं, अकर्मण्यता को आदर देने वाला निकम्मापन ही यहाँ धर्म मान लिया गया है। यह बिलकुल झूठ, फरेब पर टिका हुआ गरीब, दलित, आदिवासी और महिला विरोधी धर्म है, रोज महिलाएं घरों में अपमानित होती हैं। उन्हें ज्यादती का शिकार होना पड़ता है, जबरन शादी करनी पड़ती है और रोज बरोज अनिच्छा के बावजूद भी अपने मर्द की कथित मर्दानगी जो कि सिर्फ वीर्यपात तक बनी रहती है, उसे झेलना पड़ता है। उन्हें हर प्रकार से प्रताड़ित, दण्डित और प्रतिबंधित एवं सीमित करने वाला यह धर्म ‘ यत्र नार्यस्तु पुजयन्तु,रमन्ते तत्र देवता‘ के श्लोक बोल कर आत्ममुग्ध होता जाता है। इसे धर्म कहें या कमजोरों का शोषण करने वाली अन्यायकारी व्यवस्था ? इस गैर बराबरी को धर्म कहना वास्तविक धर्म का अपमान करना है।
गैर बराबरी पर टिके इस धर्म के बारे में सोचते सोचते मुझे डॉ. अम्बेडकर का वह कथन बार बार याद आता है जिसमें देश के दलितों को सावधान करते हुए वो कहते हैं कि – ‘भारत कभी भी मजहबी मुल्क नहीं बनना चाहिए, विशेषकर हिन्दू राष्ट्र तो कभी भी नहीं, वरना देश के अनुसूचित जाति व जन जाति के लोग पुनः अछूत बनाये जा कर गुलाम बना दिए जायेंगे। …….अब यह दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को तय करना है कि वे आज़ाद रहना चाहते है या वर्ण व्यवस्था के, जाति और लिंग भेद के गुलाम बनने को राज़ी है ? अगर राज़ी है तो मुझे कुछ भी नहीं कहना है। ………….

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